Sunday 21 October 2018

Let us return to life of simplicity and towards pious life !


Let us return to life of simplicity and towards pious life !
Dear friends, as you know before industrialization and mass production life od simplicity and frugality was preached everywhere.
But now in this age of industrialization, mass production has become cheaper and mass consumption will bring more and more profit. The governments have become agents of business and industry.
Through direct advertisements or through television and internet our coming generations are becoming a tool to earn more and more profits. Fake medical researches are being done and even fake epidemics are generated. Organ transplants have become reality and with that organ thefts and plunder have started.
Extramarital sex and oral and anal sex are being propagated as such human beings will live the life of earning and consumption. All higher values are being trampled upon.
The natural resources are being plundered, piollution is increasing and global warming is occurring.
The women and children are being trafficked and great business of narcotics and pornography is flourishing.
Even government officials and UN officials are becoming part of global crime rackets.
No hope can be put on government or United Nations.
We must return to life of simplicity and pious life and hope for coming of Savior-  Vishnu’s Avtar, Jesus or Mahdi. The hope will keep alive human values and some day even common people may become powerful to restore human civilization.  


Sunday 7 October 2018

मवद्दते अहलेबैत अलै० क्यों ?


मवद्दते अहलेबैत अलै० क्यों 
आज दुनिया के अनेक लोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कमालात को देख कर अपनी युवा अवस्था में दूसरी दुनिया के अस्तित्व को नकारने लगे हैं और चलिए हम भी मान लेते हैं दूसरी दुनिया नहीं है लेकिन इस दुनिया की हमारी ज़िन्दगी  में प्यार,मुहब्बत हमारी ज़रुरत है - कोई भी इंसान कितना ही दौलतमंद क्यों न हो जाए , कितने ही ऊंचे पद पर क्यों न हो जाए और विज्ञान , कला और साहित्य , स्पोर्ट्स और फिल्म्स में कितना ही ऊंचा क्यों न उठ जाए और सब का जीवन हमारे सामने है चाहे अल्बर्ट आइंस्टीन हों, बर्ट्रेंड रसल हों , चार्ली चैपलिन हों या माइकल जैक्सन - ज़िन्दगी तभी अच्छी होती है जब अपनों से प्यार हो और इस ज़िन्दगी के उस पार जो चले गए हैं उनसे मिलने की उम्मीद हो।
जिस तरह हमें अपनों का प्यार चाहिए वैसे ही कुछ अपने ऐसे भी चाहिए जो उस दुनिया  में अगर कोई ख़ुदा है तो उसके हमारे बीच एक कड़ी हों जैसे कि Moses या Jesus थे।
1400 वर्षों से नयी दुनिया नयी सभ्यता नया ज़माना है और इसके नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ले० हैं और उन्हीं के ज़माने से लगातार लिखित इतिहास मौजूद है।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ले० के परिवार से नस्ल से पीढ़ी दर पीढ़ी  एक श्रंखला चल रही है जिससे हमारे परिवारों का  बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है
और इनके मुक़ाबले में हर ज़माने में 1400 वर्षों से इनका एक दुश्मन रहा है और यह भी क़ुदरत का करिश्मा है कि आज मुसलामानों की बहुत बड़ी तादाद इन दुश्मनों की वफादार है और इनमें से ही  बड़ी तादाद से दहशतगर्द  निकलते रहते हैं जिनकी वजह से पूरी दुनिया इस्लाम से क़ुरान से और हज़रत मुहम्मद सल्ले० से नफरत करती है।
लेकिन जो हज़रत मुहम्मद सल्ले और उनके अहलेबैत अतहार के बारे में जानते हैं वे जानते हैं बेशक वे इस दुनिया और उस दुनिया के बीच की मोहतरम और क़ाबिले मवद्दत शख्सियतें थीं बस ज़रुरत है दुनिया को उनके बारे में बताने की।         



आज़माईश और शैतान

ग़ैर -मुस्लिम विचारकों को दावते फ़िक्र
आज़माईश  और शैतान
आज की दुनिया विज्ञान और टेक्नोलॉजी की दुनिया है हमें मशग़ूल रखने और खुश रखने के लिए स्पोर्ट्स , फिल्म्स, आना जाना और सोशल मीडिया मौजूद हैं और वास्तविक दुनिया में Economics और Politics से जुड़े संघर्ष चल रहे हैं लेकिन इन सब के साथ हमारे व्यक्तिगत जीवन और बहैसियत मुस्लिम क़ौम में शामिल होने की वजह से आज़माइशें चल रही हैं :
मुस्लिम क़ौम की  आज़माइश पैग़म्बरे इस्लाम की ज़िन्दगी के आखिरी दिनों से शुरू हुयी जब उनके साथ उठने बैठने वाले लोगों जिन्हें बाद में सहाबा के नाम से बहुत ऊंचा स्थान दिया जाने लगा - साहब का मतलब साथी होता है और यह लफ्ज़ तो क़ुरआन में आया है लेकिन शायद न तो नबी के साथ या पहले गुज़रे नबियों के साथ यह लफ्ज़ किसी मख़सूस ग्रुप के लिए इस्तेमाल हुआ है- में खलबली मच गयी और इनमें जो मुनाफ़िक़ थे उन्हें खतरा पैदा हुआ कि नबी अपने जानशीन के नाम  का ऐलान कर देंगे और उन्हें किसी भी हाल ,में अली अलै को उनका जा नशीन बनने नहीं देना था। इस मज़बूत अली दुश्मन खेमे के तार रसूल की अपनी दो बीवियों से जुड़े हुए थे जिनके बाप इस अली दुश्मन खेमे के बानी थे। 
हज के मौके पर एक पहाड़ से पत्थर ढुलका कर नबी का काम तमाम करने की कोशिश की गयी। उसी वक़्त बिजली चमकी और चेहरे दिख गए।
हज से लौटते वक़्त ग़दीर के मुक़ाम पर नबी ने ऐलान किया जिस का मौला मैं अली भी उसके मौला !   1400 वर्षों से इस ऐलान का मतलब तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
मदीने आ कर नबी ने यह इंतज़ाम किया कि एक लश्कर में इन बड़े बड़ों को शामिल किया पर यह नहीं गए।
आखिरी वक़्त शोर हंगामा इतना बढ़ गया कि नबी ने कहा कागज़ क़लम लाओ मैं लिख दूँ तो नंबर दो ने कहा 'यह मर्द हिजयान बक रहा है।'
नबी की वफ़ात हो गयी जहां इंतेक़ाल हुआ था वहीँ अली अलै और कुछ उनके शियों ने नबी को दफ़न कर दिया और इस तद्फीन में वे बड़े बड़े शामिल नहीं थे वे सब कुछ दूर पर एक बाग़ में मीटिंग कर के नबी के जा नशीन को  चुन रहे थे और अबू बकर खलीफा चुन लिए गए।
चलो यह सब हो गया क्या अली अलै की तरफ से कोई बग़ावत हुयी ?  लेकिन शैतान बहकाता गया और यह तये किया गया कि अली अलै से बयत हासिल की जाए और इसके लिए आग के शोले ले कर रसूल की बेटी का घर घेरा गया दरवाज़ा तोडा गया जिसमें नबी की बेटी ज़ख़्मी हुईं और अली अलै के गले में रस्सी डाल कर उन्हें खलीफा के पास  लाया गया।  इसकी क्या ज़रुरत थी ? यह काम तो बड़े बड़े मुजरिमों के साथ भी दुनिया की कोई हुकूमत नहीं करती है।
बात स्पष्ट है कि मुस्लिम क़ौम के बड़े बड़ों की आज़माइश नबी की जा नशीनी को ले कर शुरू हुयी और यह भी चलो ठीक था कि तुम 18 महीने खलीफा बनने की लालच में गलती कर गए पर फिर यह ज़ुल्म क्यों किया  ? नबी की बेटी के घर का दरवाज़ा तोडा और उनके शौहर के गले में रस्सी बाँधी ?
मामला यहीं तक नहीं रुका  नबी की बेटी को और तकलीफ पहुंचाने के लिए शायद अपनी बेटी को खुश करने के लिए 18 महीने रहने वाले खलीफा ने वह बाग़ जो नबी ने अपनी बेटी को दिया था उनसे छीन लिया और जब वह अपने हक़ के लिए उनके दरबार में गयीं तो खुद ख़ुदा बन गए और बोले 'नबी की कोई मीरास नहीं होती' यानी जिस तरह कोई हुकूमत अपने दुश्मन की संपत्ति ज़ब्त कर ले उस तरह 18 महीने वाले खलीफा ने रसूल की संपत्ति ज़ब्त कर ली और उनकी बेटी को उनके हक़ से महरूम कर दिया।
नबी अपनी बेटी को बहुत  चाहते थे यह सब को मालूम था नबी ने यह कहा कि जिसने फातिमा को नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया और जिसने फातिमा को नाराज़ किया उसने अल्लाह को नाराज़ किया - यह बात वह भी जानते थे और आज तक का हर मुसलमान यह जानता है।
खलीफा बनना आज़माइश थी और शैतान ने उस वक़्त के ख़ास ख़ास लोगों को बहका दिया और सिर्फ बात वहीँ नहीं रुकी नबी की कही हर बात की मुखालिफत शैतान ने उन लोगों से करा दी - अली अलै जिसका मैं मौला उसके अली मौला के बदले में उनके गले में रस्सी का फन्दा डाला गया और फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है उसके बदले उनके घर का दरवाज़ा तोडा गया और बाप ने जो बाग़ दिया था उसे छीना गया।
शैतान जीतता गया मुसलमान हारते गए !
और यह शुरू के 18 महीनों की आज़माइश   आज भी जारी है - You Tube पर आज भी देख लीजिये अबू बकर को सब से अफज़ल बताने वाले लोग आज भी अपने को उनके साथ किये हुए हैं।
 एक मौलवी ने तो लिखा फातिमा काफिर थीं ! किसी मोमिन से तीन दिन से ज़्यादा नाराज़ होना कुफ्र है और अबू बकर अफ़ज़ल थे और फातिमा उनसे अपनी ज़िन्दगी तक नाराज़ रही हैं इसलिए वह काफिर हैं।
मुसलामानों की आज़माइश भी जारी है और शैतान के बहकावे भी जारी है - शैतान जीतता जा रहा है मुसलमान हारते जा रहे हैं। 
632 CE में सभ्यता का सूर्य पूरी तरह से अरब पर चमक रहा था - उस समय रोम , पारस , हिन्द , चीन और जापान में भी साम्राज्य थे पर वे सब पतन की ओर अग्रसर थे मक्के में जन्में रसूले अरबी ने अपने देश और पूरे विश्व का रुख बदल दिया था और उनकी वफ़ात के बाद जो इंसान जोड़ तोड़ से मदीने ,में खलीफा बना निस्संदेह विश्व में शीर्षस्थ हो गया था - यानी उसे दुनिया पूरी पूरी मिल गयी थी।
क़ुरान ने इस उम्मत की आज़माईश मवद्दते क़ुर्बा के ज़रिये रखी थी - यह कोई अपने क़राबतदारों से मवद्दत का हुक्म नहीं था - क़बीले परस्त लोगों को भला ऐसा हुक्म क्यों दिया जाएगा ? उन्हें तो क़बीला , नस्ल और खुदगर्ज़ी छोड़ कर अपने से बेहतर इंसानों से मवद्दत का हुक्म दिया गया था !
कोर्स पहले तये होता है चाहे डिपार्टमेंट की बिल्डिंग भी न बनी हो , प्रोफेसर भी अपॉइंट न हुआ हो लाइब्रेरी और लैब भी मुकम्मल न हुयी हो तो यह कहना आयत पहले आयी उस वक़्त तो अली अलै और फातिमा सलामन अलैहा की शादी भी नहीं हुयी थी  मुनासिब नहीं है।
कोई नहीं जानता हज में जिन तीन शैतानों को कंकरी मारी जाती है वे कौन थे , हैं या होंगे ? हज़रत इब्राहीम अलै को शैतान तीन जगह तीन शकल में मिला पर बड़ा मंझला और छोटा कैसे हो गया ? ज़रूर यह तीन कोई और हैं ! इस पर भी गौर करने की ज़रुरत है ! बहुत पहले से लोगों को मालूम था कि एक नबी कुंवारी माँ से पैदा होगा ! बहुत पहले से मालूम था John के मुनकाशफ़े में भी है कोई अल्लाह की राह में अपने को क़ुर्बान करेगा !
बहरहाल उम्मत की आज़माइश पहले तये हुयी demo  बाद में शुरू हुआ - कभी मुबाहले के मैदान में पहचनवाया कभी मस्जिद में सिजदों को तूल दे कर तो कभी बेटी के लिए खड़े हो कर कभी बताया फातिमा मेरे जिगर का टुकड़ा है जिसने उसे नाराज़ किया उसने मुझे नाराज़ किया जिसने मुझे नाराज़ किया उसने अल्लाह को  नाराज़ किया 
कभी कहा हुसैन मुझ से है मैं हुसैन से हूँ , कभी कहा फातिमा सय्यदतुल निसा अल आलमीन हैं अली मौलाए कायनात हैं हसन और हुसैन जन्नत के जवानों के सरदार हैं ( उस वक़्त तो वे बच्चे ही थे ) और  आखिर में ग़दीर में कहा जिसका मैं मौला उसके अली मौला और फिर नबी दुनिया से चले गए।
6 महीने के अंदर ग़मज़दा फातिमा ने भी दुनिया छोड़ दी।
और इस 6 महीने में और शायद बाप की जुदाई में रोती फातिमा सलामन अलैहा के मकान पर पहले ही महीने में या पहले ही हफ्ते में हमला हुआ दरवाज़ा तोड़ दिया गया और मरते वक़्त खलीफा बोला ( 18 महीने में ) भला से मैंने फातिमा का घर न खोला होता भले ही वह  जंग के लिए दरवाज़ा बंद करते ! (तबरी )
दुनिया के इतिहास में इससे बड़ी बेग़ैरती और गद्दारी शायद न कहीं हुयी है और न कहीं होगी।
उसका हश्र क्या होगा ?
आज तक ला इल्म जाहिल मुसलमान बहक रहे हैं - अब बी वक़्त है नबी की बेटी की तरफ पलट जाओ और जिन लोगों ने उनसे दुश्मनि की उनके साथ बुरा  किया उनसे बेज़ारी ज़ाहिर करो।  अपने को और अपने घर वालों  जहन्नम से बचाओ जो काफी भर चुकी है !
और जो गैर मुस्लिम विचारक हैं उनके सामने मुसलामानों का इतिहास एक सोचने समझने की चीज़ है !
खलीफा दो और तीन और पहले की बेटी के बारे में और कुछ लिखने की ज़रुरत नहीं है ! शैतान जीत रहा है मुसलमान हार रहे हैं You Tube पर देख लीजिये  अहलेबैत अलै  के दुश्मनों के तेवर !

दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की शर्त


दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की शर्त
हज़रत मुस्तफा सल्ले अलहु अलैहि व आलेही वसल्लम इस ज़माने आखिर के नबी हैं और उनके इस पैगाम के बाद कि दुनिया के सारे इंसान एक माँ बाप की औलाद हैं उनकी उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इस दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करें - पिछली क़ौमें यहूदी , ईसाई और सबाई इस लायक नहीं हैं कि वह यह काम अंजाम दे सकें उनका ज़माना बीत चुका  है - उनके इक्का दुक्का लोग सिर्फ atheism , agnosticism और humanism की बात कर सकते हैं और वैसे भी  Socialism और Communism के उसूलों से दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की कोशिशें ख़त्म हो चुकी हैं।
मुसलामानों का बहुत बड़ा तब्क़ा शैतान के बहकावे में आ कर ज़ालिमों ग़ासिबों का हिमायती और तरफ़दार बना हुआ है और इसमें शिद्दत बढ़ती जा रही है और दहशतगर्दी की राह पर चल चुका है।
इस्माइली शिया भी history में एक मुद्दत तक उभरने के बाद खामोश हो चुके हैं।
सिर्फ शिया असनाअसरी अपने ज़िंदा और क़ायम इमाम के मुन्तज़िर हैं पर इल्म और रौशनख़याली न होने की वजह से रास्ता भूले हुए हैं।
यह दुनिया आज़माइश की जगह है और जो कुछ पहले दूसरे और तीसरे खलीफा ने किया वह उनकी आज़माईश का नतीजा है जिसमें वह  कामयाब नहीं हुए और उसके बाद मुआविया और यज़ीद सब से चालाक और सब से जालिम हुक्मरां साबित हुए।
बनीअब्बासिया के दौर में एक इज्मा हुआ था जिसमें यह फैसला लिया गया की पहले 100 वर्षों में जो फैसले लिए गए वे सही थे।
आज फिर उम्मत को ज़रुरत है कि फिर से हालात पर नज़र करे और यह फैसला करे कि पहले 100 साल में जो कुछ हुआ उसमें उम्मत की आज़माइश थी और उम्मत भटक गयी - आज उम्मत को जरूरत है कि जो भटक गए उनसे मुंह फेर ले और असली हादी - रसूल की बेटी जनाब फातिमा ज़हरा सलामन अलैहा से माफी मांगे हज़रत अली अलै और इमाम हसन अलै और इमाम हुसैन अलै को अपना हादी बरहक़ माने और फिर दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने के लिए पूरी दुनिया के लिए मशाले राह बने।
दुनिया से भुकमरी और गुलामी ख़त्म की जाए
दुनिया में जो लगातार लूट चल रही है जो पेड़ जंगल काटे जा रहे हैं और जो जानवर चिड़ियों मछलियों को मारा जा रहा है उनके जिस्म की चीज़ों की तिजारत हो रही है उन्हें रोका जाए।
तब पूरी दुनिया इस्लाम में शामिल होगी और उसके हिसाब से इस्लाम में भी वक़्त के हिसाब से कुछ तब्दीलियां करनी होंगी
1  मक्के मदीने का इंतज़ाम पूरी उम्मत के हाथ में होगा
2  नमाज़े तीन वक़्तों में अदा की जाएंगी
3  हज की मुद्दत चार महीनों में चलेगी जिससे कि सारी दुनिया के इंसान शामिल हो सकें
4  जानवरों की क़ुर्बानी सिर्फ हज में की जायेगी वह भी मिलजुल  कर जिससे बहुत काम जानवर ज़िब्ह हों - बक़रीद में बाक़ी जगहों पर कोई ज़रुरत नहीं - आज के ज़माने में किसी को रोज़गार , तालीम और घर बसाने में मदद करना ही नेकी है।