मवद्दते अहलेबैत अलै० क्यों ?
आज दुनिया के अनेक लोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कमालात
को देख कर अपनी युवा अवस्था में दूसरी दुनिया के अस्तित्व को नकारने लगे हैं और चलिए
हम भी मान लेते हैं दूसरी दुनिया नहीं है लेकिन इस दुनिया की हमारी ज़िन्दगी में प्यार,मुहब्बत हमारी ज़रुरत है - कोई भी इंसान
कितना ही दौलतमंद क्यों न हो जाए , कितने ही ऊंचे पद पर क्यों न हो जाए और विज्ञान
, कला और साहित्य , स्पोर्ट्स और फिल्म्स में कितना ही ऊंचा क्यों न उठ जाए और सब का
जीवन हमारे सामने है चाहे अल्बर्ट आइंस्टीन हों, बर्ट्रेंड रसल हों , चार्ली चैपलिन
हों या माइकल जैक्सन - ज़िन्दगी तभी अच्छी होती है जब अपनों से प्यार हो और इस ज़िन्दगी
के उस पार जो चले गए हैं उनसे मिलने की उम्मीद हो।
जिस तरह हमें अपनों का प्यार चाहिए वैसे ही कुछ अपने
ऐसे भी चाहिए जो उस दुनिया में अगर कोई ख़ुदा
है तो उसके हमारे बीच एक कड़ी हों जैसे कि Moses या Jesus थे।
1400 वर्षों से नयी दुनिया नयी सभ्यता नया ज़माना है
और इसके नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ले० हैं और उन्हीं के ज़माने से लगातार लिखित इतिहास
मौजूद है।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ले० के परिवार से नस्ल से
पीढ़ी दर पीढ़ी एक श्रंखला चल रही है जिससे हमारे
परिवारों का बच्चा बच्चा वाक़िफ़ है
और इनके मुक़ाबले में हर ज़माने में 1400 वर्षों से इनका
एक दुश्मन रहा है और यह भी क़ुदरत का करिश्मा है कि आज मुसलामानों की बहुत बड़ी तादाद
इन दुश्मनों की वफादार है और इनमें से ही बड़ी
तादाद से दहशतगर्द निकलते रहते हैं जिनकी वजह
से पूरी दुनिया इस्लाम से क़ुरान से और हज़रत मुहम्मद सल्ले० से नफरत करती है।
लेकिन जो हज़रत मुहम्मद सल्ले और उनके अहलेबैत अतहार
के बारे में जानते हैं वे जानते हैं बेशक वे इस दुनिया और उस दुनिया के बीच की मोहतरम
और क़ाबिले मवद्दत शख्सियतें थीं बस ज़रुरत है दुनिया को उनके बारे में बताने की।
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