Sunday 7 October 2018

दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की शर्त


दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की शर्त
हज़रत मुस्तफा सल्ले अलहु अलैहि व आलेही वसल्लम इस ज़माने आखिर के नबी हैं और उनके इस पैगाम के बाद कि दुनिया के सारे इंसान एक माँ बाप की औलाद हैं उनकी उम्मत की ज़िम्मेदारी है कि इस दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करें - पिछली क़ौमें यहूदी , ईसाई और सबाई इस लायक नहीं हैं कि वह यह काम अंजाम दे सकें उनका ज़माना बीत चुका  है - उनके इक्का दुक्का लोग सिर्फ atheism , agnosticism और humanism की बात कर सकते हैं और वैसे भी  Socialism और Communism के उसूलों से दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने की कोशिशें ख़त्म हो चुकी हैं।
मुसलामानों का बहुत बड़ा तब्क़ा शैतान के बहकावे में आ कर ज़ालिमों ग़ासिबों का हिमायती और तरफ़दार बना हुआ है और इसमें शिद्दत बढ़ती जा रही है और दहशतगर्दी की राह पर चल चुका है।
इस्माइली शिया भी history में एक मुद्दत तक उभरने के बाद खामोश हो चुके हैं।
सिर्फ शिया असनाअसरी अपने ज़िंदा और क़ायम इमाम के मुन्तज़िर हैं पर इल्म और रौशनख़याली न होने की वजह से रास्ता भूले हुए हैं।
यह दुनिया आज़माइश की जगह है और जो कुछ पहले दूसरे और तीसरे खलीफा ने किया वह उनकी आज़माईश का नतीजा है जिसमें वह  कामयाब नहीं हुए और उसके बाद मुआविया और यज़ीद सब से चालाक और सब से जालिम हुक्मरां साबित हुए।
बनीअब्बासिया के दौर में एक इज्मा हुआ था जिसमें यह फैसला लिया गया की पहले 100 वर्षों में जो फैसले लिए गए वे सही थे।
आज फिर उम्मत को ज़रुरत है कि फिर से हालात पर नज़र करे और यह फैसला करे कि पहले 100 साल में जो कुछ हुआ उसमें उम्मत की आज़माइश थी और उम्मत भटक गयी - आज उम्मत को जरूरत है कि जो भटक गए उनसे मुंह फेर ले और असली हादी - रसूल की बेटी जनाब फातिमा ज़हरा सलामन अलैहा से माफी मांगे हज़रत अली अलै और इमाम हसन अलै और इमाम हुसैन अलै को अपना हादी बरहक़ माने और फिर दुनिया में अद्ल और इन्साफ क़ायम करने के लिए पूरी दुनिया के लिए मशाले राह बने।
दुनिया से भुकमरी और गुलामी ख़त्म की जाए
दुनिया में जो लगातार लूट चल रही है जो पेड़ जंगल काटे जा रहे हैं और जो जानवर चिड़ियों मछलियों को मारा जा रहा है उनके जिस्म की चीज़ों की तिजारत हो रही है उन्हें रोका जाए।
तब पूरी दुनिया इस्लाम में शामिल होगी और उसके हिसाब से इस्लाम में भी वक़्त के हिसाब से कुछ तब्दीलियां करनी होंगी
1  मक्के मदीने का इंतज़ाम पूरी उम्मत के हाथ में होगा
2  नमाज़े तीन वक़्तों में अदा की जाएंगी
3  हज की मुद्दत चार महीनों में चलेगी जिससे कि सारी दुनिया के इंसान शामिल हो सकें
4  जानवरों की क़ुर्बानी सिर्फ हज में की जायेगी वह भी मिलजुल  कर जिससे बहुत काम जानवर ज़िब्ह हों - बक़रीद में बाक़ी जगहों पर कोई ज़रुरत नहीं - आज के ज़माने में किसी को रोज़गार , तालीम और घर बसाने में मदद करना ही नेकी है।    
  



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